सरसों की जैविक और रासायनिक खेती: आधुनिक तकनीक, बीज, और दवा के साथ पूरी जानकारी
सरसों एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जो खाद्य तेल उत्पादन में प्रमुख भूमिका निभाती है। इसके पौष्टिक गुण और उच्च बाजार मूल्य इसे किसानों के लिए लाभदायक बनाते हैं। आज हम आपको सरसों की जैविक और रासायनिक खेती के बारे में बताएंगे, जिसमें आधुनिक तकनीक, बीज, दवाइयों, और उन्नत खेती तकनीकों का प्रयोग शामिल है।
1. भूमि की तैयारी और उर्वरक प्रबंधन
भूमि का चयन: सरसों की खेती के लिए दोमट या हल्की दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। इस मिट्टी में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
जैविक उर्वरक: जैविक खेती के लिए गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, और हरी खाद का प्रयोग करें। यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं और पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं।
रासायनिक उर्वरक: संतुलित उर्वरक का प्रयोग करें। प्रति हेक्टेयर 60-70 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस, और 20 किलोग्राम पोटाश का उपयोग उचित मात्रा में करें।
उपचार का तरीका: जैविक तरीके से की गई खेती में ट्राइकोडर्मा और पीएसबी जैसे जैविक उपचार का प्रयोग करें। रासायनिक खेती में डीएपी, यूरिया, और अन्य उर्वरकों का संतुलित प्रयोग करना चाहिए।
2. उत्तम बीज का चयन और बुवाई
बीज चयन: बीज का चयन स्थानीय जलवायु के अनुसार करें। उन्नत किस्मों में पीबीएन-1, वरुणा, और आरएच 30 लोकप्रिय हैं।
बीज शोधन: जैविक खेती में बीज को गोमूत्र या नीम के अर्क में भिगोकर शोधन करें। रासायनिक खेती में 2 ग्राम थीरम या 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज से शोधन करें।
बुवाई का समय: सरसों की बुवाई का उपयुक्त समय अक्टूबर के पहले सप्ताह से मध्य नवंबर तक होता है।
बुवाई का तरीका: लाइन बुवाई और ड्रिल विधि उपयुक्त मानी जाती हैं। लाइन बुवाई से पौधों में उचित दूरी और अच्छे विकास की सुविधा मिलती है।
3. सिंचाई प्रबंधन
पहली सिंचाई: बुवाई के 25-30 दिन बाद पहली सिंचाई करें। यह सिंचाई अंकुरण के लिए आवश्यक नमी उपलब्ध कराती है।
दूसरी सिंचाई: फूल आने के समय और तीसरी सिंचाई फल बनने के समय करें।
जल बचाव: जल बचाव के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली या स्प्रिंकलर का उपयोग करें। इससे पानी का कुशलता से उपयोग होता है और उत्पादन में वृद्धि होती है।
4. रोग और कीट प्रबंधन
कीट नियंत्रण:
सरसों की फसल में मुख्यतः माहू और सफेद मक्खी की समस्या होती है। जैविक विधि से निम्बोली अर्क, मेटारिजियम जैसे जैविक कीटनाशक का छिड़काव करें। रासायनिक तरीके से इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल का 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
रोग प्रबंधन: सफेद रतुआ और झुलसा रोग की समस्या होती है। जैविक विधि में गोमूत्र और छाछ के मिश्रण का छिड़काव करें। रासायनिक नियंत्रण के लिए 0.2% मैनकोजेब का छिड़काव करें।
फफूंदनाशक: फफूंद संक्रमण रोकने के लिए जैविक खेती में ट्राइकोडर्मा का प्रयोग करें और रासायनिक खेती में थीरम का छिड़काव करें।
5. जैविक और रासायनिक पोषण प्रबंधन
जैविक पोषक तत्व: गोमूत्र, जीवामृत, और पंचगव्य का उपयोग जैविक पोषक तत्वों के लिए करें। यह पौधों को आवश्यक नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्व देते हैं।
रासायनिक पोषण: पौधों को अतिरिक्त नाइट्रोजन के लिए यूरिया का उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा सल्फर और जिंक जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व का उपयोग भी लाभकारी होता है।
मिट्टी परीक्षण: फसल के लिए आवश्यक उर्वरक की सटीक मात्रा जानने के लिए पहले मिट्टी का परीक्षण करें।
6. फसल कटाई और भंडारण
कटाई का समय: जब पौधों की फलियों का रंग पीला हो जाए और बीज पूरी तरह से पक जाए, तो कटाई करें। कटाई का उचित समय मार्च-अप्रैल होता है।
भंडारण का तरीका: कटाई के बाद बीज को अच्छी तरह सुखाकर भंडारण करें ताकि उसमें नमी न रहे। भंडारण के लिए नीम की पत्तियों का उपयोग करें, इससे अनाज में कीट और संक्रमण नहीं लगता।
सरसों की जैविक और रासायनिक खेती के फायदे
जैविक खेती से मिट्टी की गुणवत्ता और फसल की पौष्टिकता में सुधार होता है, जिससे अनाज का स्वाद और गुणवत्ता बेहतर होती है।
रासायनिक खेती में अधिक पैदावार प्राप्त होती है और फसल पर नियंत्रण बेहतर रहता है।
आधुनिक तकनीकों का प्रयोग कर किसान पैदावार बढ़ा सकते हैं और श्रम व समय की बचत कर सकते हैं।
खेती-बाड़ी जनकारी पर आप जानेंगे कि कैसे सरसों की जैविक और रासायनिक खेती किसानों के लिए लाभदायक है। जैविक विधि से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, वहीं रासायनिक विधि से पैदावार बढ़ती है। तकनीकी और उन्नत विधियों का उपयोग कर किसान अपनी फसल में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
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