"गेहूं की जैविक और तकनीकी खेती: बेहतर पैदावार के आसान और असरदार तरीके"
गेहूं की जैविक और तकनीकी खेती किसानों के लिए लाभदायक साबित हो सकती है। जैविक खेती से मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है और फसल की गुणवत्ता भी बेहतर होती है। वहीं, तकनीकी खेती से पैदावार बढ़ती है और मेहनत कम लगती है। आइए जानते हैं, कैसे आप भी अपनी गेहूं की फसल में जैविक और तकनीकी तरीके अपनाकर अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
1. भूमि की तैयारी और जैविक खाद का उपयोग
गेहूं की जैविक खेती के लिए मिट्टी की तैयारी में खास ध्यान दें। अच्छी तरह से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बनाएं।
जैविक खाद का उपयोग करें, जैसे कि गोबर की खाद, कम्पोस्ट, और वर्मी कम्पोस्ट। ये खाद मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं और पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व देते हैं।
हरी खाद जैसे ढैंचा या सनई की खेती कर उसे मिट्टी में मिला सकते हैं। इससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है।
2. उत्तम बीज का चयन
उच्च गुणवत्ता वाले और स्थानीय जलवायु के अनुकूल जैविक बीज चुनें।
बीज शोधन: जैविक बीजों को नीम के पत्तों के रस या गोमूत्र में भिगोकर शोधन करें ताकि बीज रोग-रहित रहें।
बुवाई से पहले बीज को 24 घंटे तक पानी में भिगोकर रखें, इससे अंकुरण बेहतर होता है।
3. बुवाई का तरीका
सीड ड्रिल मशीन का उपयोग करें, इससे बीज समान दूरी पर और सही गहराई पर बोए जाते हैं, जिससे फसल का विकास अच्छा होता है।
लाइन बुवाई करें ताकि पौधों के बीच पर्याप्त जगह हो। यह तकनीक खरपतवार को नियंत्रित करने में मदद करती है और पौधों को धूप और हवा मिलती है।
बुवाई का उचित समय अक्टूबर से नवंबर का मध्य होता है, ताकि ठंड की शुरुआत से पहले पौधे तैयार हो सकें।
4. खरपतवार नियंत्रण
जैविक खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए हाथ से निराई-गुड़ाई करें या मशीनी उपकरण का उपयोग करें।
मल्चिंग का उपयोग कर सकते हैं, जिसमें पौधों के आसपास घास या भूसा बिछा दिया जाता है। इससे मिट्टी में नमी बनी रहती है और खरपतवार की वृद्धि कम होती है।
गोमूत्र या नीम के तेल का छिड़काव भी जैविक तरीके से खरपतवार को नियंत्रित करता है।
5. सिंचाई के तरीके
गेहूं की सिंचाई के लिए फरो सिंचाई (Furrow Irrigation) का प्रयोग करें, इससे पानी की बचत होती है।
रेनगन का उपयोग भी लाभकारी है, खासकर सूखे क्षेत्रों में। रेनगन से बारीक बूंदों में पानी दिया जाता है, जिससे नमी लंबे समय तक बनी रहती है।
सिंचाई का पहला पानी बुवाई के 21 दिन बाद दें। इसके बाद जरूरत के अनुसार 20-25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
6. जैविक पोषण प्रबंधन
पौधों को स्वस्थ रखने के लिए नीम का तेल, पंचगव्य, और जीवामृत का उपयोग करें।
गोमूत्र के छिड़काव से फसल को नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्व मिलते हैं।
पौधों के विकास के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व का उपयोग करें, जिसमें सल्फर, जिंक, और बोरॉन शामिल हैं।
7. रोग और कीट प्रबंधन
जैविक कीट नियंत्रण के लिए नीम का तेल, अग्नि अस्त्र और दशपर्णी अर्क का छिड़काव करें। ये सभी कीटों को दूर रखने में कारगर हैं।
रोग नियंत्रण के लिए गोमूत्र, छाछ, और मट्ठा का उपयोग करें। तम्बाकू और लाल मिर्च के मिश्रण से बना अर्क भी फसल सुरक्षा में सहायक है।
जैविक पेस्टिसाइड जैसे त्रिफला या दशपर्णी अर्क का उपयोग कर सकते हैं, जो पौधों को बिना नुकसान पहुंचाए कीटों को नियंत्रित करते हैं।
8. फसल कटाई और भंडारण
गेहूं की फसल अप्रैल के अंत में कटाई के लिए तैयार होती है। फसल के पूरी तरह से पकने पर उसकी कटाई करें।
कटाई के बाद गेहूं को अच्छी तरह सुखाकर ही भंडारण करें ताकि उसमें नमी न रहे।
भंडारण के लिए नीम की पत्तियों का उपयोग करें, जिससे अनाज में कीट और अन्य संक्रमण न लगें।
गेहूं की जैविक खेती के फायदे
जैविक खेती से फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है और फसल में रासायनिक अवशेष नहीं रहते।
तकनीकी तरीकों का उपयोग कर पैदावार बढ़ाई जा सकती है और समय व मेहनत की बचत होती है।
जैविक खेती के उत्पादों की मांग बढ़ रही है, जिससे अच्छे दाम मिलने की संभावना रहती है।
जैविक और तकनीकी खेती का यह मिश्रण किसानों के लिए अधिक फायदेमंद हो सकता है। जैविक विधि से मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ती है, और तकनीकी तरीकों से मेहनत और समय बचता है।
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