संदेश

अगस्त, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

🌾 धान की पराली समाधान

चित्र
  धान की पराली प्रबंधन: समाधान, सरकारी मदद व किसान गाइड | खेती-बाड़ी जानकारी धान की पराली समाधान –  सरकारी योजना, किसानों का अनुभव,  सब्सिडी और 2025 की पूरी गाइड |  खेती-बाड़ी जानकारी पराली जलाने की समस्या और चुनौतियां ध्यान दें – सरकारी स्कीम: पराली प्रबंधन के लिए मदद पराली प्रबंधन की जरूरी मशीनें और उनकी सब्सिडी सरकारी योजना में आवेदन कैसे करें? प्राइवेट सर्विसेज और तकनीक का रोल कृषक कहानी: मेरे गांव में पराली समाधान और कमाई कैसे बढ़ी FAQ: किसानों के आम सवाल और जवाब पोस्ट टैग्स – SEO के लिए बेहतर कीवर्ड पराली जलाने की समस्या – किसानों के लिए क्यों बड़ी चुनौती? हर साल धान की कटाई के बाद खेत में बची पराली (stubble) किसानों के लिए सिरदर्द बन जाती है। जलाने पर ना सिर्फ वायु प्रदूषण, मिट्टी की गुणवत्ता और पर्यावरण को नुकसान होता है बल्कि अब सख्त जुर्माना, सब्सिडी कट, और सरकार की कार्रवाही का भी डर है। सरकारी स्रोत (PIB): फसल अवशेष प्रबंधन योजना जानकारी सरकार की पराली समाधान योजनाएं 2025 – किसान कैसे उठाएं अधिक लाभ? भारत सरकार ...

धान की सिंचाई

चित्र
  धान की सिंचाई: महत्वपूर्ण बातें और बचाव के उपाय 1. प्रस्तावना Introduction धान की खेती में सिंचाई का सही प्रबंधन अत्यंत महत्वपूर्ण है। सही समय और उचित मात्रा में सिंचाई न केवल फसल की उपज को बढ़ाने में सहायक होती है, बल्कि जल की बचत भी करती है। इस ब्लॉग में हम उन सभी आवश्यक बातों पर चर्चा करेंगे जो धान की सिंचाई के दौरान ध्यान में रखनी चाहिए। 2. पानी की गुणवत्ता Water Quality साफ और मीठा पानी : धान की सिंचाई के लिए साफ और मीठा पानी सबसे उपयुक्त होता है। खारे या दूषित पानी का उपयोग फसल की वृद्धि और गुणवत्ता को नुकसान पहुँचा सकता है। जल का pH स्तर : पानी का pH स्तर 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। यह फसल के लिए सबसे अनुकूल होता है, जिससे पौधे को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं। 3. सिंचाई के आसान तरीके Easy Irrigation Methods पारंपरिक बाढ़ सिंचाई : यह सबसे सामान्य विधि है जिसमें खेत को पानी से भरकर सिंचाई की जाती है। यह विधि विशेष रूप से उन क्षेत्रों में उपयुक्त है जहाँ पानी की उपलब्धता अधिक होती है। स्प्रिंकलर सिंचाई : स्प्रिंकलर विधि छोटे और मध्यम आकार के खेतों के लिए उपयुक्...

20 दिन बाद की देखभाल,बम्पर पैदावार

चित्र
धान की फसल के 20 दिन बाद की देखभाल (Care for Rice Crop 20 Days After Planting) सिंचाई और जल प्रबंधन (Irrigation and Water Management) सिंचाई : धान की फसल को नियमित रूप से पानी दें। खेत में हमेशा पानी की सही मात्रा बनाए रखें ताकि पौधों की जड़ों को नमी मिलती रहे। जल प्रबंधन : ज्यादा पानी से बचें, इससे पौधों की जड़ों को ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। खरपतवार नियंत्रण (Weed Control) खरपतवार हटाना : खरपतवार को समय-समय पर निकालें, क्योंकि ये पौधों से पोषक तत्व और पानी चुरा सकते हैं। खरपतवार नाशक : खरपतवार को कम करने के लिए '2,4-D' जैसे नाशकों का उपयोग करें। कीट और रोग प्रबंधन (Pest and Disease Management) कीट निरीक्षण : कीटों की उपस्थिति पर ध्यान दें। अगर कीटों की संख्या बढ़ती है, तो कीटनाशक जैसे 'सेविन' या 'लैम्डा सायहलोथ्रिन' का उपयोग करें। रोग नियंत्रण : अगर बीमारियों के लक्षण जैसे 'ब्लास्ट' या 'ब्राउन स्पॉट' दिखाई दें, तो फफूंदनाशक जैसे 'बोर्डो मिक्स्चर' या 'मैनकोज़ेब' का प्रयोग करें। खाद और यूरिया का उपयोग (Fertilizer and Urea Applicat...

🥔 "आलू की खेती: बुबाई से लेकर फसल कटाई तक की संपूर्ण गाइड"

चित्र
🥔 आलू की खेती (Potato Farming)   1. आलू की खेती का परिचय Introduction to Potato Farming आलू एक महत्वपूर्ण खाद्य फसल है, जिसे विश्वभर में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। भारत में मुख्यतः उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब, और गुजरात में आलू की खेती होती है। भारत आलू उत्पादन में विश्व में चौथे स्थान पर है, और यहां हर साल लगभग 50 मिलियन टन आलू का उत्पादन होता है। इस ब्लॉग में आलू की खेती के महत्वपूर्ण पहलुओं जैसे मिट्टी , जलवायु , बीज चयन , बुबाई की तकनीक , सिंचाई , पोषण प्रबंधन , कीट और रोग प्रबंधन , खुदाई , और आर्थिकता पर चर्चा करेंगे। 2. मिट्टी और जलवायु की आवश्यकताएँ Soil and Climate Requirements मिट्टी (Soil): दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त है। मिट्टी में जल निकास अच्छा होना चाहिए। पीएच स्तर 5.2 से 6.4 के बीच होना चाहिए। जलवायु (Climate): ठंडा और शुष्क मौसम आदर्श है। दिन का तापमान 20-25°C और रात का तापमान 14-18°C के बीच होना चाहिए। उत्तर भारत में रबी सीजन , और दक्षिणी भारत में खरीफ और रबी सीजन में खेती उपयुक्त है। 3. बीज चयन और तैयारी Seed Selection and Preparation उच्च गु...

धान की फसल में पत्ता लपेटक (Leaf Roller) की समस्या: पहचान, कारण, और प्रभावी नियंत्रण के उपाय – एक विस्तृत गाइड

चित्र
  धान की फसल में पत्ता लपेटक (Leaf Roller): पहचान, कारण, और नियंत्रण धान की फसल में पत्ता लपेटक (Leaf Roller) कीट एक गंभीर समस्या हो सकती है, जो फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को प्रभावित करती है। इस ब्लॉग में, हम पत्ता लपेटक के लक्षण, कारण, और नियंत्रण के उपायों पर विस्तार से चर्चा करेंगे ताकि किसान इसे प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकें। पत्ता लपेटक (Leaf Roller) क्या है? लक्षण पत्तियों की लपेटने की क्रिया : पत्ता लपेटक कीट का लार्वा पत्तियों को लपेटता है, जिससे पत्तियाँ गुथी हुई और कांजी जैसी दिखने लगती हैं। लपेटी हुई पत्तियाँ चिपचिपी और गोलाकार होती हैं, जिससे पत्तियों की सामान्य क्रियाविधि प्रभावित होती है। सफेद धब्बे और छिद्र : संक्रमित पत्तियों पर सफेद धब्बे और छिद्र बन सकते हैं, जो आर्द्रता और कीटों की गतिविधि के कारण हो सकते हैं। ये धब्बे पत्तियों की संपूर्णता को प्रभावित करते हैं और फसल की वृद्धि को बाधित करते हैं। पत्तियों की विलुप्ति : पत्तियाँ धीरे-धीरे पीली और सूखी हो जाती हैं, जिससे पौधे की संपूर्ण स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गंभीर संक्रमण में, पत्तियाँ पूरी तर...

धान की बीमारियां

चित्र
धान की प्रमुख बीमारियों का इलाज: लक्षण, कारण, दवा और जैविक उपचार धान की खेती में विभिन्न प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है, जो फसल की उपज को प्रभावित कर सकती हैं। इन बीमारियों का सही समय पर पता लगाकर और उचित दवा या जैविक उपचार का उपयोग करके फसल को बचाया जा सकता है। इस ब्लॉग का उद्देश्य किसानों को धान की प्रमुख बीमारियों, उनके लक्षण, कारण, दवाओं और जैविक उपचार की पूरी जानकारी प्रदान करना है। 1. ब्लास्ट रोग (Blast Disease) लक्षण: पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे, जो बाद में बढ़कर धूसर रंग के हो जाते हैं। तना कमजोर हो जाता है, जिससे पैदावार में कमी आती है। कारण: यह रोग एक फफूंद (फंगस) द्वारा होता है, जो नमी और तापमान के बदलते मौसम में तेजी से फैलता है। दवा: ट्राइसाइक्लाजोल (0.6 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करें। इस दवा का छिड़काव 10-12 दिनों के अंतराल पर दो बार करें। जैविक उपचार: नीम तेल: नीम तेल का 5% घोल पत्तियों पर छिड़कें। नीम का तेल फफूंद को रोकने में मदद करता है। विरल एक्टिवेटर: घोड़े की खाद का काढ़ा तैयार करें और पत्तियों पर छिड़कें। यह फफूंद को नियंत्रित करता है। उपलब्ध उत्पा...

🌾धान की सीधी बिजाई विधि (DSR)

चित्र
धान की सीधी बिजाई विधि (DSR) धान की खेती: डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) विधि डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) विधि एक आधुनिक तकनीक है जो धान की खेती को अधिक प्रभावी और संसाधन-कुशल बनाती है। इस विधि में बीजों को सीधे खेत में बोया जाता है, बिना नर्सरी में उगाए। यह विधि पानी और श्रम की बचत करने के साथ-साथ फसल की लागत को भी कम करती है। आइए, जानें DSR विधि की पूरी प्रक्रिया के बारे में। 1. DSR क्या है? DSR का मतलब है कि धान के बीज सीधे खेत में बोए जाते हैं। इसमें बीजों को नर्सरी में उगाने की आवश्यकता नहीं होती। इससे पानी और श्रम की बचत होती है और खेती की लागत कम होती है। DSR विधि में रबी के मौसम में भी धान उगाया जा सकता है, और इसके लिए रेनगन का उपयोग किया जा सकता है। 2. फसल के लिए उपयुक्त मौसम धान की बुबाई के लिए खरीफ का मौसम सबसे अच्छा होता है, जो जून से अक्टूबर तक रहता है। इस मौसम में पर्याप्त बारिश और नमी होती है। DSR विधि में बुबाई मानसून की शुरुआत से पहले करें ताकि बीज अंकुरित हो सकें। रबी मौसम में भी धान की बुबाई की जा सकती है, और इसके लिए रेनगन का उपयोग किया जा सकता है। 3. मिट्...